
अंतरराष्ट्रीय लवी मेले का पुरातन स्वरूप बेशक दिनों दिन बदल रहा है लेकिन हस्तशिल्प क कद्रदानों के लिए एक बाजार आज भी मेला स्थल के समीप सजता है. इस बाजार में मंदिरों में उपयोग होने वाले पारंपारिक वाद्य यंत्रों से लेकर मूर्तियां और पूजा में काम आने वाले सामान की खूब मांग रहती है. समय के साथ- साथ हस्तशिल्प के कारीगरों की आमदनी भी कम हो रही है लेकिन हस्तशिल्प का चितेरा कुल्लू जिले के शाड़ाबाई गांव का निवासी डोलाराम आज भी अपनी अनूठी कलाकृतियों के साथ अपने पूर्वजों की परंपरा को निभा रहा है. डोलाराम को यह कला अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है हालांकि उसने किसी प्रकार का तकनीकी प्रशिक्षण नहीं लिया है फिर भी सिर्फ चेहरा देखकर उसे सांचे में ढालना वह खूब जानता है. देवी- देवताओं की मूर्तियां हो या ढोल नगाड़े, नरसिंघे, करनाल, छत्र, कावली, बाणा आदि डोलाराम के सधे हुए कुशल हाथ उन्हें एक अलग ही पहचान देते हैं.(रिपोर्ट- आत्मा सिंह)
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